लोगों की राय

नारी विमर्श >> स्त्रियों की पराधीनता

स्त्रियों की पराधीनता

जॉन स्टुअर्ट मिल

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14307
आईएसबीएन :9788126704187

Like this Hindi book 0

पुरुष-वर्चस्ववाद की सामाजिक-वैधिक रूप से मान्यता प्राप्त सत्ता को मिल ने मनुष्य की स्थिति में सुधार की राह की सबसे बड़ी बाधा बताते हुए स्त्री-पुरुष सम्बन्धों में पूर्ण समानता की तरफदारी की है।

इस श्रृंखला के बारे में



स्त्रियों के उत्पीड़न और दासता का इतिहास उतना ही पुराना है जितना असमानता और उत्पीड़न पर आधारित सामाजिक संरचनाओं के उद्भव और विकास का इतिहास। प्राचीन साहित्य में ढेरों मिथक और कथाएँ मौजूद हैं जो पुरुष-स्वामित्व की सामाजिक स्थिति के विरुद्ध स्त्रियों के प्रतिरोध और विद्रोह का साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं।

स्त्रियों की दासता और दोयम दर्जे की सामाजिक स्थिति का कई स्त्री-विचारकों ने (और कुछ पुरुष विचारकों ने भी) प्राचीन काल में साहसिक एवं तर्कपूर्ण प्रतिवाद किया था, इसके प्रमाण भारत और पूरी दुनिया के इतिहास और साहित्य में मिलते हैं। मध्यकाल के शताब्दियों लम्बे गतिरोध के दौर में स्त्री-मुक्ति की वैचारिक पीठिका तैयार करने की दिशा में उद्यम लगभग रुके रहे और प्रतिरोध की धारा भी अत्यन्त क्षीण रही। आधुनिक विश्व इतिहास की ब्राह्म वेला में, पुनर्जागरण काल के महामानवों के मानवतावाद ने और धर्मसुधार आन्दोलनों ने पितृसत्तात्मकता की दारुण दासता के विरुद्ध स्त्री-समुदाय में भी नई चेतना के बीज बोये जिनका अंकुरण प्रबोधन काल में साफ-साफ दिखने लगा। जो देश औपनिवेशिक गलामी के नीचे दबे होने के चलते मानवतावाद और तर्कबुद्धिसंगति के नवोन्मेष से अप्रभावित रहे और जहाँ इतिहास की गति कुछ विलम्बित रही, वहाँ भी राष्ट्रीय जागरण और मुक्ति संघर्ष काल में स्त्री समुदाय में अपनी मुक्ति की नई चेतना संचरित हुई, हालाँकि उसकी अपनी इतिहास-जनित विशिष्ट कमजोरियाँ थीं जो आज भी बनी हुई हैं और इन उत्तर-औपनिवेशिक समाजों के स्त्री आन्दोलन को वैचारिक सबलता और व्यापक आधार देने का काम किसी एक प्रबल वेगवाही सामाजिक झंझावात को आमंत्रण देने (उसकी तैयारी करने) के दौरान ही पूरा किया जा सकता है।

हमारा यह प्रस्तुत उपक्रम भी इस कार्यभार को पूरा करने के अनगिनत और बहुरूपी प्रयासों में से एक है, चाहे यह एक बेहद अदना-सी पहल ही क्यों न हो! हम समझते हैं कि स्त्री-मुक्ति के प्रश्न को भारतीय सन्दर्भ में भली-भाँति समझने और उसे जन-मुक्ति के व्यापक प्रश्न से जोड़ने के लिए, अध्ययन व प्रयोग के अन्य बहुतेरे उपक्रमों के साथ-साथ, इस प्रश्न की विश्व-ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से अवगत होना भी बहुत जरूरी है।

स्त्री-मुक्ति के प्रश्न पर चिन्तन और वैचारिक संघर्षों की शुरुआत, दो शताब्दियों से भी कुछ अधिक समय पहले, अमेरिकी और यूरोपीय बुर्जुआ जनवादी क्रान्तियों की पूर्ववेला में हुई थी, जब प्रबोधनकालीन आदर्शों से प्रभावित और जनान्दोलनों में सक्रिय जागरूक स्त्रियों ने मनुष्य के “प्राकृतिक अधिकार और “स्वतंत्रता-समानता-भ्रातृत्व" की घोषणाओं को स्त्रियों के लिए भी लागू करने की मांग उठायी। तब से लेकर आज तक, विश्व के प्रायः सभी हिस्सों में, स्त्री-आन्दोलनों का, स्त्री-पुरुष समानता एवं स्त्री-अधिकारों के विविध पक्षों को लेकर चली बहसों का और स्त्री-प्रश्न पर चिन्तन का, सुदीर्घ इतिहास हमारे पीछे पसरा पड़ा है। जनवादी क्रान्तियों, सर्वहारा क्रान्तियों, राष्ट्रीय मुक्ति संघर्षों में स्त्रियों की भागीदारी और विभिन्न सामाजिक क्रान्तियों के बाद स्त्रियों की स्थिति में आये परिवर्तन तथा स्त्री-प्रश्न के नये-नये आयामों का उद्घाटन भी इतिहास का सच है।

स्त्री-प्रश्न स्त्री-प्रश्नों पर केन्द्रित विमर्श-शृंखला है। हमारी कोशिश है कि विगत दो शताब्दियों से भी कुछ अधिक समय के दौरान, पूरी दुनिया में स्त्री की सामाजिक स्थिति और पुरुष-वर्चस्ववाद के दर्शन, अर्थशास्त्र, राजनीति एवं संस्कृति पर, स्त्री-प्रश्न के विविध पक्षों-आयामों पर तथा स्त्री-मुक्ति परियोजना के विभिन्न प्रारूपों-प्रकल्पों पर जो कुछ भी महत्त्वपूर्ण लिखा गया है, उसका एक प्रतिनिधि चयन हिन्दी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करें।

स्त्री-दासता या स्त्री-पुरुष असमानता के ऐतिहासिक कारणों पर, स्त्री-उत्पीड़न के राजनीतिक अर्थशास्त्र और विशेषकर घरेलू श्रम की प्रकृति पर, पुरुष-वर्चस्ववाद के दर्शन और मनोविज्ञान पर, सामाजिक-आर्थिक संरचना के साथ यौन उत्पीड़न के अन्तर्सम्बन्धों पर, यौनिक विभेद और यौन-राजनीति की भूमिका पर तथा स्त्री-आन्दोलन की दिशा और स्वरूप से जुड़े प्रश्नों पर, विशेषकर बीसवीं शताब्दी के दौरान घनघोर बहसें चली हैं।

विशेष तौर पर, सामाजिक संरचना और स्त्री की स्थिति के बीच के रिश्तों को लेकर तथा वर्ग और पुरुष सत्ता के बीच के रिश्तों को लेकर नारीवाद की विविध रैडिकल बुर्जुआ धाराओं और मार्क्सवाद की विविध धाराओं के बीच तनाव और टकराव लगातार मौजूद रहे हैं। द्वितीय विश्वयुद्धोत्तर धाराओं के बीच तनाव और टकराव लगातार मौजूद रहे हैं। द्वितीय विश्वयुद्धोत्तर काल में नारीवाद की विविध सरणियों और मार्क्सवाद की विविध सरणियों के बीच लम्बी बहसें चलती रही हैं जो आज भी जारी हैं। हमारे सामने बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक समाजवादी प्रयोगों के दौरान स्त्रियों की जीवन स्थितियों में आये परिवर्तनों के अनुपेक्षणीय तथ्य भी हैं, कुछ अनसुलझे प्रश्न भी हैं, कुछ प्रयोग भी हैं और कुछ फूटती दिशाएँ भी हैं।

भारत में उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध से कुछ पुरुष सुधारकों ने स्त्रियों की दारुण-बर्बर स्थिति में सुधार की माँग करने की शुरुआत की और शताब्दी के अन्तिम दशकों में कुछ जागरूक स्त्रियों ने भी परिवर्तन की पुरजोर आवाज उठायी। परम्परा, नैतिकता, धर्म, आचार और प्राकृतिक न्याय को लेकर बहसें चलीं। पर कहीं न कहीं विमर्श और सुधार आन्दोलनों का यह पूरा परिदृश्य औपनिवेशिक सामाजिक-आर्थिक पारिस्थितिकी से अनुकूलित था। बीसवीं शताब्दी में, राष्ट्रीय जागरण के उन्मेष में स्त्री-जागृति की धारा भी शामिल थी और स्त्री-प्रश्न भी नये रूप में एजेण्डे पर उपस्थित था, लेकिन राष्ट्रीय आन्दोलन की विभिन्न संघटक धाराओं की वैचारिक निर्बलताओं-विचलनों से स्त्री-मुक्ति विमर्श भी मुक्त या अप्रभावित नहीं था।

बीसवीं शताब्दी के अन्तिम चतुर्थांश में भारत में स्त्री-जागृति की एक नई लहर वैचारिक धरातल पर भी उठी और आन्दोलनात्मक धरातल पर भी। स्वाभाविक तौर पर बहस का माहौल भी काफी उग्र था और विभ्रम भी पर्याप्त मौजूद थे। कमोबेश यही स्थिति आज भी है। भारतीय नारी आन्दोलन आज परिपक्वता के दौर में प्रविष्ट हो चुका है, लेकिन इसका वैचारिक आधार अब भी कमजोर है। इस प्रस्तुत शृंखला स्त्री-प्रश्न के विविध पक्षों पर बहस को संवेग और सार्थक दिशा देगी तथा एक सही-सार्थक परिप्रेक्ष्य और स्त्री-मुक्ति के व्यावहारिक कार्यक्रम तक पहुँचने में सहायक बनेगी, हमें इसकी पूरी उम्मीद है।
- सम्पादक

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Warning

Message: Unknown: write failed: No space left on device (28)

Filename: Unknown

Line Number: 0

A PHP Error was encountered

Severity: Warning

Message: Unknown: Failed to write session data (files). Please verify that the current setting of session.save_path is correct (/var/lib/php/sessions)

Filename: Unknown

Line Number: 0